"मन बावरा"

We all have some dreams, some goals in our life. Few of them holds a special place in our heart which we can't express in words. These dreams are like 'खयाली पुलाव' - people will say that you aren't able to achieve it, you don't have any way/path to make your dreams come true. But we still have the hope to fulfill those 'खयाली पुलाव'. This poem is for these dreams of mine ~
                     
                         ~ मन बावरा  ~    
ये मन बावरा है !
न जाने क्या-क्या सपने देखता हैं,
ये मन कई सारे खयाली पुलाव पकाता हैं,
जिसमें कभी थोड़ी मिर्ची ज्यादा और नमक कम हों जाता है ।

ये बावरा-सा मन कभी असमानों में पंख फैलाकर उड़ने को करता हैं,
तो कभी इन ऊंचे बदलो को छूने का करता है ।
कभी-कभी ये मन एक जगह गुमसुम बैठे रहने का करता हैं
और कभी जोरो से चिल्ला कर अपने गमों को बाहर निकालने का करता हैं ।

सच में ये मन बावरा हैं !
ये कई ख्वाब अंदर-ही-अंदर बुनता हैं ।

न जाने क्या होगा इस बावरे का ?
शायद ! इसने दिल के किसी कोने में इस अटपटे-से ख्वाबों के पूरे होने की आशा रखी हैं.....
जिसे हमारे दिमाग ने कब का
"NO ENTRY" का board दिखा दिया हैं.....

ये दिल और दिमाग की जंग तो सदियों पुरानी हैं...
पर कहते हैं...
"प्यार और जंग में सब जाहिर हैं " 

तो इन बुने गए ख्वाबों के लिए अगर तुम्हारे दिल में थोड़ी सी भी चाह हैं.....
 " तो साहेबा ! इस प्यार में सौदा नहीं !!

तो इस जंग में हमे इस बावरे-से मन का देना होगा ताकि वो भटक ना जाए......
और उसे ये दिलासा देते रहना होगा कि...
" अरे ओ बावरे मन !!
तु बुनते रह ये ख्वाब, तु बुनते रह ये ख्वाब,
हम हैं न तेरे साथ, हम हैं न तेरे साथ..
बस बुनते जा यूं ख्वाब,
बस बुनते जा यूं ख्वाब.........! :)

I hope you all like this poem, see you all in my next blog till then खाओ, पीयो ऐश करो मित्रों 🌼✨
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